मौसमी बदलावों से जीन और प्रतिरक्षा प्रणाली प्रभावित होती है
यूके में एक अध्ययन से पता चला है कि मौसम के आधार पर आनुवंशिक और प्रतिरक्षा प्रणाली की गतिविधि में बदलाव होते हैं।
2014
यूके में एक अध्ययन से पता चला है कि मौसम के आधार पर आनुवंशिक और प्रतिरक्षा प्रणाली की गतिविधि में बदलाव होते हैं। इससे यह स्पष्ट हो सकता है कि संधिशोथ जैसी बीमारियों के लक्षण वर्ष के समय के आधार पर अलग-अलग क्यों होते हैं।
अध्ययन के सह-लेखक, क्रिस वालेस, कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के आनुवंशिक सांख्यिकीविद्, कहते हैं:
"हमारे नतीजे बताते हैं कि, आधुनिक परिवेश में, सर्दियों में प्रतिरक्षा प्रणाली की सूजन-रोधी स्थिति में वृद्धि सूजन के कारण होने वाली बीमारियों की घटनाओं के चरम को समझाने में मदद करती है, जिससे लोगों को सूजन के प्रभावों के प्रति अधिक संवेदनशील बना दिया जाता है।"
अध्ययन में उत्तरी और दक्षिणी दोनों गोलार्धों के 16,000 से अधिक लोगों के रक्त को देखा गया। मेडिकल जर्नल "नेचर कम्युनिकेशंस" में प्रकाशित परिणामों से संकेत मिलता है कि परीक्षण किए गए लगभग एक चौथाई जीन (परीक्षण किए गए 22,822 में से 5,136) की गतिविधि वर्ष के समय के अनुसार भिन्न होती है। कुछ को सर्दियों में और कुछ को गर्मियों में अधिक सक्रिय दिखाया गया।
प्रतिरक्षा कोशिकाएं और वसा ऊतक और रक्त की संरचना भी बदल गई।
सर्दियों के दौरान, गर्मियों की तुलना में लोगों की प्रतिरक्षा प्रणाली में प्रो-इंफ्लेमेटरी प्रोफाइल होती है और कार्डियोवैस्कुलर और ऑटोइम्यून बीमारियों से जुड़े प्रोटीन का स्तर बढ़ जाता है। सूजन को दबाने वाला एक जीन, एआरएनटीएल, गर्मियों में अधिक सक्रिय और सर्दियों में कम सक्रिय पाया गया। चूहों पर किए गए पिछले अध्ययनों से पता चला है कि यह जीन सूजन को दबा देता है और इसलिए इससे यह समझाने में मदद मिल सकती है कि सर्दियों में लोगों में सूजन का स्तर अधिक क्यों होता है।
वालेस कहते हैं, इस मौसमी बदलाव की जड़ें विकासवादी हो सकती हैं।
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